मीर का जीवन चरित्र meer ka jeevan
मीर का जीवन चरित्र ‘मीर’ ने अपना जीवन-चरित्र स्वयं ही ज़िक्रे-’मीर’ नामक एक फ़ारसी पुस्तक में लिख दिया है। यह पुस्तक बहुत दिनों तक अप्राप्त थी लेकिन कुछ वर्ष पहले अंज़ुमने-तरक़्क़ी-ए-उर्दू के मन्त्री डा.अब्दुल हक़ ने इसकी खोज करके इसे प्रकाशित करवा दिया है जिससे काल-निरूपण तथा तथ्यों की विश्वसनीयता में बड़ी मदद मिली है। ‘मीर’ के बुजुर्ग हिजाज़ (अरब का एक प्रदेश) से भारत आये थे। पहले वे हैदराबाद गये, वहां से अहमदाबाद और फिर ‘मीर’ के प्रपितामह ने आगरे में ( जो तत्कालीन राजधानी थी) आकर दम लिया। उनका कुछ ही दिन बाद देहांत हो गया। ‘मीर’ के पिताह आगरे में फ़ौजदार हो गये। इनके दो बेटे थे। बड़े का दिमाग ख़राब था और वह जवान ही मर गया। छोटे ‘मीर’ अली मुत्तक़ी सूफ़ी फकीर हो गये। उनके तीन लड़के थे। पहली स्त्री से मुहम्मद हसन और दूसरी से मुहम्मद तक़ी और मुहम्मद रज़ी। यही मंझले पुत्र तक़ी बाद में उर्दू काव्य-गगन के सूर्य बनकर चमके। जन्म के बारे में निश्चित रूप से कुछ नहीं मालूम हुआ कि किस सन् में पैदा हुए। ज़िक्रे-‘मीर’ में भी इसका कोई उल्लेख नहीं है। लेकिन और घटनाओं के समय इन्होंने अपनी जो उम्र