हिंदी साहित्य का इतिहास लेखन की परंपरा
हिंदी साहित्य का इतिहास लेखन की परंपरा
हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन के बीज तो हमें " चोरासी VAYSHNAV की वार्ता " दो सो बावन वश्नो की वार्ता " में ही प्राप्त हो जाते है , पर ये रचनाये हिंदी साहित्ता के सम्बन्ध में केवल परिचय मात्र है, इनमे निष्टि तिथि और क्रम का ब्यौरा नहीं है. ये रचनाये इतहास नहीं है , इतिहास तो अतीत की घटना , स्तिथि , व परवर्ती का क्रम बाधा ब्यौरा होता है, , विद्वानों ने मन HAI की राजा शिव प्रशाद सितारे हिंद ने हिंदी साहित्य के इतिहास पर एक निबंध लिखा था , उसमे कुछ एतिहासिकता नाम की चीज़ थी
गार्सा डी तासी का इतिहास
गार्सा डी तासी फ्रेंच विद्वान थे वो एशियाई भाषो के जानकार थे , इन्होने फ्रेंच भाषा में हिंदी कवियो का इतिहास लिखा है, उसका फ्रेंच में नाम है " इस्त्वार डी ला लितुरेरे इ हिन्दुस्तानी " ये ग्रन्थ दो भागो में निकला , दिवित्य खंड तीन भागो में निकला गया जिसमे और भी वृधि की गई ,
विशेषता :
हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन के बीज तो हमें " चोरासी VAYSHNAV की वार्ता " दो सो बावन वश्नो की वार्ता " में ही प्राप्त हो जाते है , पर ये रचनाये हिंदी साहित्ता के सम्बन्ध में केवल परिचय मात्र है, इनमे निष्टि तिथि और क्रम का ब्यौरा नहीं है. ये रचनाये इतहास नहीं है , इतिहास तो अतीत की घटना , स्तिथि , व परवर्ती का क्रम बाधा ब्यौरा होता है, , विद्वानों ने मन HAI की राजा शिव प्रशाद सितारे हिंद ने हिंदी साहित्य के इतिहास पर एक निबंध लिखा था , उसमे कुछ एतिहासिकता नाम की चीज़ थी
गार्सा डी तासी का इतिहास
गार्सा डी तासी फ्रेंच विद्वान थे वो एशियाई भाषो के जानकार थे , इन्होने फ्रेंच भाषा में हिंदी कवियो का इतिहास लिखा है, उसका फ्रेंच में नाम है " इस्त्वार डी ला लितुरेरे इ हिन्दुस्तानी " ये ग्रन्थ दो भागो में निकला , दिवित्य खंड तीन भागो में निकला गया जिसमे और भी वृधि की गई ,
विशेषता :
- गार्सा डी तासी का यह प्रतन हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास माना जाता है ,
- इन्होने कवियो के रचनाकाल का ब्यौरा दिया है , हिंदी कवी , मुस्लमान कवि , सबको संकेतित किया गया है .
- इस रचना में कवियो के नाम अंग्रेजी अछारो के अनुसार दिए गए है , काल करम के अनुसार कवियो के व्रत नहीं है, रचनाओ के उद्धरण व् विवरण भी दिए है ,
- हिंदी के साथ हिंदीतर कवियो के विवरण देने से इसमें व्यवस्था की कमी रह गई है,
- ग्रन्थ के आरम्भ में १०० प्रष्टो की भूमिका देकर अपने मंतावो को स्पस्ट किया है
- इन्होने हिन्दुस्तानी भाषा को एशिया भर की भाषाओ से अच्छा बताया है, हिंदी हिन्दुस्तानी की प्रशंसा का ये पहला प्रयास है
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