डॉ. हजारी प्रसाद दिवेदी का हिंदी साहित्य का इतिहास
सन १९४० में हिंदी साहित्य की भूमिका के नाम से इनका इतिहास ग्रन्थ प्रकाशित हुआ ,डॉ. हजारी प्रसाद दिवेदी जी की खोज पूर्ण द्रष्टि इसमें दिखाई देती है, कई जगह पर इन्होने आचार्य शुक्ल की मान्यतो का खंडन किया है |
विशेषताएं :
विशेषताएं :
नगरी प्रचारणी सभा ने १६ भागो में एक बहुत बड़ा इतिहास छापा है , अलग अलग भागो में इसके अलग अलग संपादक है , तथा उसमे कई लेखक है
इस तरह के सामूहिक सहयोग के अन्य कईइतिहास है इनमेकुछ महत्वपूरण इतिहास निम्न है
हिंदी साहित्य का इतिहास : डॉ. नागेन्द्र
हिंदी साहित्य : संपादक डॉ. धीरेन्द्र वर्मा
विशेषताएं :
- इन्होने अपने इतिहास में नई सामग्री नयी द्रष्टि तथा नए विचार प्रस्तुत किये है |
- इन्होने सिदो तथा नाथों को उभरा है तथा कबीर व आदि संतो पर उनका प्रभाव दिखया है |
- आदि काल पर अलग से विस्तार पूर्वक ग्रन्थ लिखा है तथा उसे अलग से छपवा है |
विशेषताएं :
- इसमें भाषा ,ध्वनि , लिपि आदि पर विचार किया गया है तत्पश्चात हिंदी साहित्य की चर्चा की गई है
- इन्होने हिंदी साहित्य को ७६० से माना है तथा " सरहपा " को पहला कवि माना है |
नगरी प्रचारणी सभा ने १६ भागो में एक बहुत बड़ा इतिहास छापा है , अलग अलग भागो में इसके अलग अलग संपादक है , तथा उसमे कई लेखक है
इस तरह के सामूहिक सहयोग के अन्य कईइतिहास है इनमेकुछ महत्वपूरण इतिहास निम्न है
हिंदी साहित्य का इतिहास : डॉ. नागेन्द्र
हिंदी साहित्य : संपादक डॉ. धीरेन्द्र वर्मा
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें