हिंदी साहित्य का काल विभाजन

साहित्य बढती हुई नदी के समान होता है यह निरंतर विकास करता है, इसलिए उसे सही अर्थो में विभाजित नहीं किया जा सकता , किसी भी भाषा के साहित्य का इतिहास सब कालो में एक सा नहीं होता है किसी एक काल में कुछ विशेष परवर्तियअ और लक्षण दिखाई देते है फिर वे लुप्त हो जाते है , उनके स्थान पर नहीं प्रवार्तिया आ जाती है , इन्ही काल विशेष की प्रविअर्त्यो के आधार पर कालो का विभाजन हुआ है,

कालो का वीर गाथा काल , भक्ति काल, रीती काल , अदि नामकरणइसी का उधाहरण है |

काल विभाजन और नामकरण अद्द्यान की सुविधा के लिए आवश्यक है किन्तु इन्हें गणित की तरह नितांत वज्ञानिक और पुराण नहीं कहा जा सकता , सचाई यह है की काल विभाजन बहुत कुछ अनुमान पर आधारित होता है, यह कहना की अमुक काल अमुक तिथि अमुक समय पर प्रारंभ हुआ तथा अमुक तिथि पर समाप्त हो गया  उससे पूर्व की सभी प्रवति समाप्त हो गई तथा उससे दूसरे दिन दूसरा काल प्रारंभ हो गया  गलत होगा, वस्तुत एक काल की प्रवातियाँ दूसरे काल में अतिक्रमण करती है , जैसे की रीती काल में भक्ति की धारा की कमी नहीं थी, तथा भक्ति काल में  श्रृंगार का प्राचुर्य पाया जाता है|

हिंदी साहित्य का सर्वप्रथम काल विभाजन शुक्ल जी की कृति " हिंदी साहित्य के इतिहास " में पाया जाता है
आधुनिक विद्वानों ने शुक्ल जी के काल विभाजन में थोड़े बहुत परिवर्तन किये है ,

१. आदि काल ( वीरगाथा काल संवत  १०५० से १३७५  अर्थात ९९३ से १३९८ ई तक)
२. भक्ति काल ( पूर्व मध्य काल संवत १३७५ से १७००  अर्थात १३९८ से १६४३ ई तक)
३. रीति काल ( उत्तर मध्य काल संवत  १७०० से १९००  अर्थात १६४३  से १८४३ ई तक)
४. आधुनिक काल ( गध: काल संवत  १९००  से अब तक  अर्थात १८४३ से अब  तक)


शिव  सिंहसरोज  हिंदी का पहला कवि  "पुष्प" को मानते है |
राहुल संक्र्तायाँ ने हिंदी का पहला कवि  " सिद्ध सरहपा " को माना है |

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