आदि काल की परिस्थियां राजनातिक परिस्थियां , धार्मिक परिस्तिथी , सामाजिक परिस्थिति :
आदि काल की परिस्थियां राजनातिक परिस्थियां
हिंदी साहित्य के इतिहास से पूर्व गुप्ता साम्राज्य का पतन हो गया था, भीतरी शिलालेख में आया है की हूणों ने आक्रमण कर के पूरी धरती को हिला दिया था |
गुप्त साम्राज्य के पतन के पश्चात मुख्या रूप से पांच राजवंशो का उदय हुआ
भारत के रक्त में धार्मिकता के तत्व वैदिक काल से ही देखने को मिलते है |
वेदों के पश्चात बोध धरम का उदय अपने आप में एक बहुत महत्व पूर्ण बात है , हिंदी साहित्य के आरम्भ में बोध धरम की पृष्ठभूमि ध्यान देने योग्य है
जैन धरम : जैन धर्मं के प्रवर्तक महावीर स्वामी थे | इस धरम में कई आचार्य व त्रिथ्कर हुए है जिनकी संख्या २५ मानी गई है | महावीर स्वामी ६ शाताब्ती में हुए थे और इनका निवास वैशाली था |
जैन धर्म का मूल सिद्धांत चार बातो पर आधारित है
अहिंसा , सत्य भाषण, अस्तये , और अनासक्ति बाद में इसमें ब्रहमचर्य को भी समिलित कर लिया गया ,
बाद में जैन धरम दो भागो में बंट गया , जिस प्रकार हिंदू धरम के उदय ने बोध धरम को हानि पहुंचाई थी इसी प्रकार जैन धर्म को भी प्रभवित किया , दक्चिन में तो ऐसे राजा हुए की उन्होंने दोनों धर्मो जैन और बोध दोनों को प्रभाव हीन कर दिया |
वैष्णव धर्म :
यह आस्तिक वादी धर्म है , इसे भगवत धर्म भी कहा गया है| इसके प्रमुख भगवन भगवान विष्णु माने गए,
भगवान राम और कृषन इसके अवतार वादी माने गए , इसका प्रमुख प्रभाव वाला छेत्र दक्चिन में था | इसमें २४ अवतारों की कल्पना की गई , इसमें राम , कृषण, आदि प्रमुख अवतार थे, इस में भक्ति को प्रमुख प्रधानता दी गई , इसमें कई आचार्य हुए, जिसमे वल्लभाचार्य , निम्बिका चर्या , शंकराचार्य, रामानुजम , माधवाचार्य, वैष्णव धर्म के प्रमुख पोषक हुए |
शैव धर्म :
६ ठी शताब्दी के अंत तक इस धर्म का अत्यधिक प्रभाव देखने को मिलता है | इस धर्म में शिव की महत्ता है| वेदों में भी भगवन रूद्र की चर्चा की गई है ,वहा से शिव के रूप को लिया गया है, वेदों मैं रूद्र को एक बहुत महान देव माना गया है , उन्हें उग्र स्वाभाव का माना गया है | हिंदू धरम में महाम्रुतुनज्य मंत्र इन्ही भगवन रूद्र की स्तुति का मंत्र है | काव्यों में भगवान रूद्र के अनेक नाम प्रचलित हुए है | इनमे शिव, शंकर, ईश, महादेव, भूतनाथ, पशुपति, आदि हुए है , कालिदास ने भगवान शिव व पारवती की स्तुति कर के इनके महत्व को दर्शाया है | प्रथ्विराज रसो में भगवन शिव की स्तुति बड़ी आदरपूर्वक की गई है | तात्पर्य यह है की आदिकाल के आरम्भ से पूर्व शैव धर्म की प्रतिष्ठा हो चुकी थी तथा आगे के कवियो ने इन्हें काफी बारीकी के साथ पर्यालोचन किया |
सिद्ध मत :
हिंदी साहित्य के आविर्भाव के समय सिद्ध मत का अच्छा प्रभाव देखने को मिलता है | इनका समय आंठवी शताब्दी से प्रारंभ होता है | सिद्धों में पहले सिद्ध का समय राहुल सांकृत्यायन ने ७६९ ई से माना है | सिद्ध लोग बोध्द थे | बाद में सिद्ध कहलाये ये वो लोग थे जो महायान की कठिन साधना को छोड़ स्वाभाविक तथा सरल जीवन में विश्वास करने लगे थे | ये लोग विलक्षण सिद्दी प्राप्त करने वाले थे , ये साधना पर विश्वास करते थे , तथा सिधि प्राप्त करने में अत : ये सिद्ध कहलाये |
वैसे तो सिद्धो की संख्या ८४ बताई गई है पर ये सूचि भिन्न भिन्न है इनमे से प्रसिद सिद्ध सरहपा , शबरपा, कन्हापा, तिलोपा, और शांतिप है , अधिकांश सिद्धो की रचनाये मूल रूप में नहीं मिलती , इनकी मूल भाषा भोत थी किन्तु इनका अनुवाद ही प्राप्त होता है | इन लोगो में खंडन मंडन की प्रवति बहुत अधिक थी | साधना पर इनका विशेष बल था, पंखंड का इन्होने बड़ा विरोध किया , बड़ी ही तीखी तथा कड़ी व व्यंग्य पूर्ण भाषा तथा रूप में इन्होने अपनी बात की है | योग तथा भोग दोनों को सामान रूप से अपनय हई, अश्लील बातें कहने में भी इन्होने कोई संकोच नहीं किया है |
नाथ पंथ :
सिद्धो की योग साधना कई पुरष को मान्य नहीं थी | उनकी प्रतिकिर्या में नाथ पंथ का उदय हुआ , विद्य्वानो ने इसके कई नाम बताये है , जैसे सिद्ध मैथ , सिद्ध मार्ग , योग मार्ग, योग सम्प्रदय , अवधूत सम्प्रदाय , इस पंथ के चलाने वाले आदि नाथ माने जाते है , परन्तु इसका विधिवत प्रयोग करने वाले मत्य्स्न्द्र नाथ थे , इस पंथ के सबसे प्रसिद्ध नाथ गोरखनाथ थे | ये लोग कुंडलिनी जागरण पर बल देते थे | ये अवधूत कहलाते थे | ये विरक्त लोग थे इन्हें संसार की मोह माया से कोई मतलब नहीं था, विरक्ति पर बल देते थे |
हिंदी साहित्य पर नाथपंथ का प्रभाव स्पस्ट दर्शित होता है |
सामाजिक परिस्थिति :
पाराचिन काल में चारवर्णों की सिथिति मानी गई
ब्रह्मिन , शुद्र, वैश्य , छत्री
मुसलमानों के आक्रमण के पश्चात हिंदू मुस्लमान का आपस में संबंघ बड़ा उनका पहनावा एक जैसा हो गया
उन्होंने फारसी लिपि को अपनाया , मुसलमानों ने हिंदी को सिखा ,
इसयुग में गुलाम भी हुआ करते थे , जिन्हें राजा रखा करते थे ..
हिंदी साहित्य के इतिहास से पूर्व गुप्ता साम्राज्य का पतन हो गया था, भीतरी शिलालेख में आया है की हूणों ने आक्रमण कर के पूरी धरती को हिला दिया था |
गुप्त साम्राज्य के पतन के पश्चात मुख्या रूप से पांच राजवंशो का उदय हुआ
- वल्लभी
- कान्यकुब्ज
- मालवा और मगध
- बंगाल
- थानेश्वर
भारत के रक्त में धार्मिकता के तत्व वैदिक काल से ही देखने को मिलते है |
वेदों के पश्चात बोध धरम का उदय अपने आप में एक बहुत महत्व पूर्ण बात है , हिंदी साहित्य के आरम्भ में बोध धरम की पृष्ठभूमि ध्यान देने योग्य है
जैन धरम : जैन धर्मं के प्रवर्तक महावीर स्वामी थे | इस धरम में कई आचार्य व त्रिथ्कर हुए है जिनकी संख्या २५ मानी गई है | महावीर स्वामी ६ शाताब्ती में हुए थे और इनका निवास वैशाली था |
जैन धर्म का मूल सिद्धांत चार बातो पर आधारित है
अहिंसा , सत्य भाषण, अस्तये , और अनासक्ति बाद में इसमें ब्रहमचर्य को भी समिलित कर लिया गया ,
बाद में जैन धरम दो भागो में बंट गया , जिस प्रकार हिंदू धरम के उदय ने बोध धरम को हानि पहुंचाई थी इसी प्रकार जैन धर्म को भी प्रभवित किया , दक्चिन में तो ऐसे राजा हुए की उन्होंने दोनों धर्मो जैन और बोध दोनों को प्रभाव हीन कर दिया |
वैष्णव धर्म :
यह आस्तिक वादी धर्म है , इसे भगवत धर्म भी कहा गया है| इसके प्रमुख भगवन भगवान विष्णु माने गए,
भगवान राम और कृषन इसके अवतार वादी माने गए , इसका प्रमुख प्रभाव वाला छेत्र दक्चिन में था | इसमें २४ अवतारों की कल्पना की गई , इसमें राम , कृषण, आदि प्रमुख अवतार थे, इस में भक्ति को प्रमुख प्रधानता दी गई , इसमें कई आचार्य हुए, जिसमे वल्लभाचार्य , निम्बिका चर्या , शंकराचार्य, रामानुजम , माधवाचार्य, वैष्णव धर्म के प्रमुख पोषक हुए |
शैव धर्म :
६ ठी शताब्दी के अंत तक इस धर्म का अत्यधिक प्रभाव देखने को मिलता है | इस धर्म में शिव की महत्ता है| वेदों में भी भगवन रूद्र की चर्चा की गई है ,वहा से शिव के रूप को लिया गया है, वेदों मैं रूद्र को एक बहुत महान देव माना गया है , उन्हें उग्र स्वाभाव का माना गया है | हिंदू धरम में महाम्रुतुनज्य मंत्र इन्ही भगवन रूद्र की स्तुति का मंत्र है | काव्यों में भगवान रूद्र के अनेक नाम प्रचलित हुए है | इनमे शिव, शंकर, ईश, महादेव, भूतनाथ, पशुपति, आदि हुए है , कालिदास ने भगवान शिव व पारवती की स्तुति कर के इनके महत्व को दर्शाया है | प्रथ्विराज रसो में भगवन शिव की स्तुति बड़ी आदरपूर्वक की गई है | तात्पर्य यह है की आदिकाल के आरम्भ से पूर्व शैव धर्म की प्रतिष्ठा हो चुकी थी तथा आगे के कवियो ने इन्हें काफी बारीकी के साथ पर्यालोचन किया |
सिद्ध मत :
हिंदी साहित्य के आविर्भाव के समय सिद्ध मत का अच्छा प्रभाव देखने को मिलता है | इनका समय आंठवी शताब्दी से प्रारंभ होता है | सिद्धों में पहले सिद्ध का समय राहुल सांकृत्यायन ने ७६९ ई से माना है | सिद्ध लोग बोध्द थे | बाद में सिद्ध कहलाये ये वो लोग थे जो महायान की कठिन साधना को छोड़ स्वाभाविक तथा सरल जीवन में विश्वास करने लगे थे | ये लोग विलक्षण सिद्दी प्राप्त करने वाले थे , ये साधना पर विश्वास करते थे , तथा सिधि प्राप्त करने में अत : ये सिद्ध कहलाये |
वैसे तो सिद्धो की संख्या ८४ बताई गई है पर ये सूचि भिन्न भिन्न है इनमे से प्रसिद सिद्ध सरहपा , शबरपा, कन्हापा, तिलोपा, और शांतिप है , अधिकांश सिद्धो की रचनाये मूल रूप में नहीं मिलती , इनकी मूल भाषा भोत थी किन्तु इनका अनुवाद ही प्राप्त होता है | इन लोगो में खंडन मंडन की प्रवति बहुत अधिक थी | साधना पर इनका विशेष बल था, पंखंड का इन्होने बड़ा विरोध किया , बड़ी ही तीखी तथा कड़ी व व्यंग्य पूर्ण भाषा तथा रूप में इन्होने अपनी बात की है | योग तथा भोग दोनों को सामान रूप से अपनय हई, अश्लील बातें कहने में भी इन्होने कोई संकोच नहीं किया है |
नाथ पंथ :
सिद्धो की योग साधना कई पुरष को मान्य नहीं थी | उनकी प्रतिकिर्या में नाथ पंथ का उदय हुआ , विद्य्वानो ने इसके कई नाम बताये है , जैसे सिद्ध मैथ , सिद्ध मार्ग , योग मार्ग, योग सम्प्रदय , अवधूत सम्प्रदाय , इस पंथ के चलाने वाले आदि नाथ माने जाते है , परन्तु इसका विधिवत प्रयोग करने वाले मत्य्स्न्द्र नाथ थे , इस पंथ के सबसे प्रसिद्ध नाथ गोरखनाथ थे | ये लोग कुंडलिनी जागरण पर बल देते थे | ये अवधूत कहलाते थे | ये विरक्त लोग थे इन्हें संसार की मोह माया से कोई मतलब नहीं था, विरक्ति पर बल देते थे |
हिंदी साहित्य पर नाथपंथ का प्रभाव स्पस्ट दर्शित होता है |
सामाजिक परिस्थिति :
पाराचिन काल में चारवर्णों की सिथिति मानी गई
ब्रह्मिन , शुद्र, वैश्य , छत्री
मुसलमानों के आक्रमण के पश्चात हिंदू मुस्लमान का आपस में संबंघ बड़ा उनका पहनावा एक जैसा हो गया
उन्होंने फारसी लिपि को अपनाया , मुसलमानों ने हिंदी को सिखा ,
इसयुग में गुलाम भी हुआ करते थे , जिन्हें राजा रखा करते थे ..
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