राम चंद्र शुक्ल का हिंदी साहित्य का इतिहास
राम चंद्र शुक्ल का हिंदी साहित्य का इतिहास
सन १९२१ में राम चंद्र शुक्ल का हिंदी साहित्य का इतिहास सामने आया , यह हिंदी शब्द सागर की भूमिका के रूप में लिखा गया था , उसी को बढाकर इसे इतिहास ग्रन्थ के रूप में लाया गया , इसमें १००० के लगभग कवियो लेखकों पर विचार किया गया है | हिंदी साहित्य इतिहास ग्रंथो में इस तिहास का बहुत अधिक महत्व है,
विशेषताएं :
सन १९२१ में राम चंद्र शुक्ल का हिंदी साहित्य का इतिहास सामने आया , यह हिंदी शब्द सागर की भूमिका के रूप में लिखा गया था , उसी को बढाकर इसे इतिहास ग्रन्थ के रूप में लाया गया , इसमें १००० के लगभग कवियो लेखकों पर विचार किया गया है | हिंदी साहित्य इतिहास ग्रंथो में इस तिहास का बहुत अधिक महत्व है,
विशेषताएं :
- इतिहास के काल विभाजन पर नवीन द्रष्टि से विचार किया गया , उसके नामकरण और युगीन परिवेश को स्पस्ट किया गया है , तर्क पूर्ण मीमांसा द्वारा अपना निर्णय दिया गया है |
- सहियता की उस काल विशेष में होने वाली प्रव्तियो पर अधिक ध्यान दिया गया है | उसके सम्बन्ध में वक्तव्य देकर उसकी विवेचन की है
- रचनाको के ग्रंथो का मूल्यांकन किया गया है |
- आचार्य शुक्ल ने अपने हिंदी साहित्य के इतिहास में आरम्भ के बहुत से कवियो को धर्म सम्बन्धी रचनाये बता कर उन्हें इसमें सम्मिलित नहीं किया है | जबकि आज उनके मूल्य को एतिहासिक संगती से पहचाना गया है |
- कुछ ऐसे कवियो को इसमें पहचाना गया जो पूर्व ग्रंथो में उपेक्चित रह गए थे , जायसी ऐसे ही महान कवि थे जिन्हें शुक्ल जी ने जगह दी व् उन्हें पहचाना |
- आचर्य शुक्ल के इतिहास में वर्गीकरण की प्रवति रही , उनके इतिहास को प्रवति और वर्गीकरण से ही पहचाना गया है |
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