फ्लैट कल्चर

मैं उन दिनों की बाते नहीं करता जो हमारे दादा दादी माता पिता हमें बताते थे की कहा गए वो आम के पद की छाव के दिन क्योंकि हम तो इस महानगरी में ही पले बड़े पर मेरे बचपन के उन दिनों में और आज में भी एक बड़ा अंतर आया है जाने वो दिन कहा खो गए जब हम सब अपनी गली मोहल्ले में कुछ देर सब आस पड़ोस के लोक मिलकर बैठते थे, कुछ बातें करते थे , कुछ खान पान किया करते थे , जब सोचता हु तो यही लगता है की लोगो की मानसिकता बदल गई है , काफी कुछ तो इस टीवी की भेट चढ़ गया है, पहले ये संस्कृति केवल फ्लैट की संस्कृति कहलाती थी लेकिन अब छोटी गली मोहल्ले भी अब इस संस्कृति के पूर्ण आगोश में है,

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