उलझन
न जाने क्यों मैं विवश हूँ
आत्मपीड़ा सह रहा हूँ
दुविधा में पड़ा
क्यों सह रहा हूँ ये व्यर्थ का बोझ |
नाराश्य में ही जाने क्यों सोचता है ये मन
कभी इस ओर कभी उस ओर
गमन करता है
इसी दुविधा में लगा हूँ
रहा हूँ अपने प्रश्नों का उत्तर खोज |
मन जाने न जाने
या जाने कभी भी चला जाता हूँ
इस मार्ग कभी उस मार्ग
मन को न समझा पाता हूँ
न मन को समझ पाता हूँ ||
आत्मपीड़ा सह रहा हूँ
दुविधा में पड़ा
क्यों सह रहा हूँ ये व्यर्थ का बोझ |
नाराश्य में ही जाने क्यों सोचता है ये मन
कभी इस ओर कभी उस ओर
गमन करता है
इसी दुविधा में लगा हूँ
रहा हूँ अपने प्रश्नों का उत्तर खोज |
मन जाने न जाने
या जाने कभी भी चला जाता हूँ
इस मार्ग कभी उस मार्ग
मन को न समझा पाता हूँ
न मन को समझ पाता हूँ ||
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