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जुलाई, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

चुनावी चाँद बनाम अमावस्या

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सर्वप्रथम राहुल जी को नमन उम्र में बड़े होने के कारण व् भारतीय परंपरा व् संस्कृति के दुर्लभ प्राय कुछ अंश जो राजनीती में घडियाली आंसू कि तरह चुनावी ऋतू में  दीखते है, तथा जिन्हें अभी राजनीती का चस्का नहीं लगा है उन राजनीती से अछुते लोगो में जो भारतीय परम्परा व् संस्कृति के अंश अभी तक जीवित है उनके फलस्वरूप आपको जी कह कर व् नमन कर अपने विचार प्रकट कर रहा हूँ,  (अगर नेताओ कि भाषा  जैसे वो संसद से लेकर अपने भाषणों में बोलते है प्रकट करने लगूं तो मेरा ये छोटा सा ब्लॉग २ दिन के भीतर बंद हो जायेगा)  तत्पश्चात आपको नेता बनने कि बधाई देता हूँ  नेता बनने के लिए जो भी  विशेषताएं किसी व्यक्ति में होनी चाहिए वो अब आपमें पूरी तरह लक्षित हो रही है, और नेताओ कि तरह आप भी चुनावी चाँद बन चुके है तथा जहां भी चुनाव नज़र आते है वही आपके दर्शन हो जाते है बाकि जगह आपके  दर्शन दुर्लभ ही है  तो बधाई हो  आपको जो आपने नेताओ कि प्रथम विशेषता को आपने पूर्ण रूप से आत्मसात कर लिया है | आज कल आपके द्वारा व्यक्त विचारों में से कुछ विचार खबरों के रूप में  में प्रस्तुत कर रहा हूँ और अत्यंत विवश हो कर जी हाँ क्योंकि कभी

कलमाड़ी को लगी छूत कि बीमारी

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सूत्रों से ज्ञात हुआ है  'कि कलमाड़ी को कल डिमेंशिया अर्थात भूलने कि बीमारी लग गई, कहाँ से पता चला है अरे वही इन मीडिया के सूत्रों से ओ हो आप भी!!!  अजी इन मीडिया वालो के सूत्रों में कोई दम नहीं होता ये तो बढ़ा चड़ा के बात को बताते है इन्हें तो सिर्फ टी आर पी बढ़ानी है, एक तरफ खबर छाप देंगे बगल में ही उसका विरोध करने वाली खबर छाप देंगे, आज कल यही इनका काम है इधर से भी लिया और उधर से भी लिया बस इनका काम बन गया  इनका कोई भरोसा नहीं| हमारे भी सूत्रों ने पता किया है खबर तो ये थी कि सुबह दो बार कलमाड़ी बाथरूम में गिरे, खबर में खैर इसमें भी दम नहीं है अब एक बार आदमी गिर ही गया तो दो बार और गिर गया तो क्या हुआ लेकिन मीडिया वालो ने इसे भी बढ़ा चड़ा कर पेश कर ही दिया खैर खबर  ए  खास  पर आते है तो कलमाड़ी जी कि गाडी बाथरूम में स्लिप मार गई तो ये इससे ये बात निकल के आई है कि उन्हें भूलने कि बीमारी हो गई है भाई गिरने से भूलने कि बीमारी का क्या सम्बन्ध है ये समझाओ  तत्पशचात में  तुम्हे अंदर कि बात बतलाऊंगा हाँ तो जनाब लोग इतने गिर रहे है,  अधिकारी इतना नीचे गिर गए , अभिनेता  कहा से कहाँ पहुँच गए, नेत

HINDI TIME HINDI SAMYA

पूर्वाह्न <=====> MORNING पूर्वाह्न , की परिभाषा पूर्वाह्न व्  अर्थ   पूर्वाह्न संज्ञा पुं० [सं०]  दिन का पहला आधा भाग ।  सबेरे से दोपहर तक का समय । =================================== मध्याह्न <===> NOON [Noun] Example: The guests arrived at noon. मध्याह्न <===> MIDDAY [Noun]   =================================== अपराह्न <===> AFTER N OON     अपराह्न दिन का बाद का भाग  साय काल

आप बीती

जुलाई  माह आ गया था इस बार मेघराज कुछ देर से प्रथ्विवासियो पर  अपनी किरपा  द्रष्टि प्रदान रहे थे, उमस, गर्मी  से बुरा हाल था प्रथ्वी से भी गरम वाष्प निकल रही थी प्यास से गला सुख रहा था रुक रुक के दो चार बूंदों के छींटे आसमान से गिर रहे थे और गर्म तवे पर पड़ने वाली पानी कि बूंदों से जो वैज्ञानिक प्रक्रिया होती है प्रथ्वी पर बादल वही  प्रक्रिया दोहरा रहे थे और ऐसे में मेघराज कुछ ऐसे लग रहे थे जैसे की किसी गठबंधन वाली सरकार के  साथ प्रत्यछ रूप से जुडी छोटा राजनीतिक दल,  बात न बात अपनी उपस्थिति  उनमे दर्ज  करा रहे थे पर पूर्ण रूप से सामने भी न आ रहे थे और पीछे भी न जा रहे थे अब जब समय आया तो काफी मान मनोव्वल के बाद जैसे वो राजी हुए और थोड़ी सी किरपा उन्होंने इस धरती पर आज की थी, जैसे कह रहे हो की ए० सी०  लगा लगा कर तुम लोगो ने ग्लोबल वार्मिंग तो बढ़ा ही दी है अब मेरी क्या जरुरत,  अब अमीरों को अपने व्यक्तिगत वातानूकुलित कक्ष और माध्यम वर्ग को बी.पि. ओ के वातानूकुलित सयंत्र की आदत पड़ गई है तो मेरी क्या आवश्यकता,  तो एक प्रश्न मन में उठा महाराज फिर गरीबो का क्या होगा, गरीबो के तो आप

हद

क्यों  क्या सो गए हो कायर तो नहीं हो फिर क्यों आज यहाँ नहीं हो क्यंकि जब दर्द हद से गुजर जाता है तो दवा बन जाता है क्या तेरे आने की अभी हद नहीं आई अरे अब तो चल उठ समय बड़ा विकट है सिर्फ मेरा ही नहीं प्रश्न ये प्रश्न सबके निकट है समय आज ऐसा है की अब रुकना मुश्किल है  एक वो भी था के जब रुकना मुश्किल था न तब रुके थे लोग हँसते हंसते लड़े थे इस पाप इस अत्याचार से जम जम के लड़े थे न तब रुके थे लोग न अब रुकेंगे लोग न  कर इन्तजार अब किसी चमत्कार का अपने मरे बिना स्वर्ग नहीं मिला किसी को और कितनी हद चाहता है और कितनी जद चाहता है

उलझन

न जाने क्यों  मैं विवश   हूँ  आत्मपीड़ा सह रहा हूँ  दुविधा  में पड़ा  क्यों सह रहा हूँ ये व्यर्थ का बोझ | नाराश्य  में ही जाने क्यों सोचता है ये मन  कभी इस  ओर कभी उस ओर  गमन करता है  इसी  दुविधा में लगा हूँ   रहा हूँ अपने  प्रश्नों का उत्तर खोज  | मन जाने न जाने  या जाने कभी भी चला जाता हूँ    इस मार्ग कभी उस मार्ग मन को न समझा पाता  हूँ  न  मन को समझ पाता हूँ ||