संदेश

अगस्त, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

"ओ यारो " दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों का मुख्या गान

"ओ यारो " दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों का मुख्या गान आज प्रस्तुत कर दिया गया, आस्कर अवार्ड विनर ऐ . आर . रहमान  के द्वारा कृत  राष्ट्र मंडल खेलो का मुख्या गान आज रहमान के द्वारा और उन्ही की आवाज में गुडगाँव में  प्रस्तुत कर दिया गया,  सुर सम्राट ऐ . आर रहमान ने  पांच मिनट तक गाने को गया और दिल्ली की मुख्या मंत्री  शीला दिख्चित   की मोजुदगी में इस गाने को प्रस्तुत किया गया , इस अवसर पर भूपेंदर सिंह हुदा और कॉमन वेल्थ खेलो कमिटी के अध्यछ कलमाड़ी भी वह मौजूद थे ,   देर से ही सही , अन्तत काफी अटकाव के पश्चात इस गाने को परस्तुत किया गया..

सरकारी मुनादी

महंगाई के इस दोर में सरकार को निम्न वर्ग की याद आई , मतलब  सरकार को  निम्नतम वेतन के बढाने पर इस बात के लिए में तत्कालीन सरकार को  बधाई देता हूँ तथा इसी बात पर एक छोटा सा एक किस्सा याद आ गया की " किसी गाँव में राजा नई योजनाये लागु करने की बात करता था , और उसका सारा विभाग भी केवल इसी चीज़ को खास तवाजो देता था ,  तो एक बार एक बालक ने बजते ढोल को देख कर अपने पिता से पूछा की पिताजी ये क्या होता है रोज़ तो उसके पिता ने कहा की कुछ नहीं बेटा , ये सरकारी मुनादी है , हमें बहलाने आती है केवल , " अत  इस बात की ओर उनका धयान आकर्षित करना चाहता हु की निम्नतम वेतन बढाने के साथ ही उन्हें इसके लागू करने पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए , अन्यथा इस का हाल भी वही होगा जो अक्सर अन्य सरकारी योजनाओ का होता है ,  २००९ का निमानतम वेतन ४११९ - ४३७७ तक था , किन्तु क्या इतना वेतन भी निम्न वर्ग को मिल प् रहा था इसमें कोई शंशय नहीं पूर्ण विश्वास है की नहीं मिल पा रहा था , लोग २००० से ३००० के मासिक वेतन पर कार्य कर रहे थे और आज भी निम्नतम  वेतन बढ़ जाने पर भी उस गरीब को कोई लाभ होगा इसमें मुझे संदेह है , अत म

आजादी का दिवस आम आदमी

आज स्वंत्रता दिवस है, लेकिन किसकी स्वतंत्रता हम लोगो की या उन भ्रष्ट नेताओ की जिन्हें आजादी के बाद खुल के खेल खेलने का अवसर मिल गया , हम तो सिर्फ उन लोगो को देख रहे है की वो कैसे आगे बढ़ते जा रहे हो उनके स्विस बैंक अकाउंट किस तरह से बढ़ रहे है , उनकी गाडियों के काफिले में और कितनी  नई गाड़िया और लाल बत्तिय जुडती जा रही है , कितने और कमांडो और सिक्यूरिटी वो लोग प्राप्त कर प् रहे है, शायद हम हिंदुस्तान के आजाद वासी तो ये देखने काल लिए ही स्वतन्त्र हुए ,  प्रजातंत्र के तंत्र को किस तरीके से अपने लायक मोड़ा त्रोड़ा जा सकता है ये हमने स्वतंत्रता के पश्चात् से निरंतर देखा है , और आगे भी देखते रहेंगे ,  सभी प्रसन्न हैं ,  आम आदमी तो केवल इसी में खुस है की आज उसे एक छुट्टी मिली चाहे उसका वेतन उसे न मिले , हा जनता हु स्वंत्रता दिवस की छुट्टी का वेतन DENA हमारे कानून  में है , किन्तु इस नियम का पालन कितने प्राइवेट कंपनी वाले करते है ये तो सिर्फ वो ही जानते है जो लोग किसी प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते है ,  भ्रष्ट सरकारी विभाग अब उन संस्थोनो को क्यों जुरमाना लगायेगे जो उन्हें माह के अंत में एक मोती

SIDHI BAAT सीधी बात

घुमा फिरा  के बात कहने का समय अब नहीं है दोस्तों , कुछ कहना है तो कहो सीधा , अपनी बात कहने के लिए कोई भी माध्यम प्रयोग करो किन्तु कहो अवश्य,  इसीलिए मैंने भी आज से सीधी बात कहने का निर्णय लिया है , आशा करता हु आपको पसंद आएगा,

दिल्ली सरकार ने गोद लिया अंत तह एक लड़का

सारी दिल्ली में चर्चा थी किन्तु अंत में दिल्ली सरकार ने इसका अंत कर ही दिया,  दिल्ली की जनता काफी दिनों से अपनी प्यारी मेट्रो का इंतज़ार किया और जब वो दिल्ली में आई तो पुरे दिलो जान से उसका स्वागत किया और सर आँखों पर बैठाया और और कहा की घर में लक्ष्मी रूपी मेट्रो आई है , आखिर दिल्ली दिल वालो की है , ये बात सर्वव्यापी है  किन्तु जब दिल्ली सरकान  और उसको जीवन देने वाले दिल्ली मेट्रो निगम ने मेट्रो को पुकारा तो उन्होंने अपनी इस मेट्रो को पुरुष का दर्ज़ा दिया , TO कहा के मेरा मेट्रो आया है , दिल्ली वालो को मेट्रो रूपी नारी देह में पुरुसत्व का नामकरण कुछ  अटपटा सा लगा अतः  अब एक  तरफ दिल्ली की जनता है और एक तरफ उसको जनम देने वाले तो भैया दिल्ली की जनता अपने जनार्दन के सामने क्या कह सकती है , जनता जनार्दन है ये सिर्फ अब केवल मिथक ही है  अब तो में  भी कहूँगा की मैं  मेरा मेट्रो से में राजीव चौक जा रहा हूँ  

फ्लैट कल्चर

मैं उन दिनों की बाते नहीं करता जो हमारे दादा दादी माता पिता हमें बताते थे की कहा गए वो आम के पद की छाव के दिन क्योंकि हम तो इस महानगरी में ही पले बड़े पर मेरे बचपन के उन दिनों में और आज में भी एक बड़ा अंतर आया है जाने वो दिन कहा खो गए जब हम सब अपनी गली मोहल्ले में कुछ देर सब आस पड़ोस के लोक मिलकर बैठते थे, कुछ बातें करते थे , कुछ खान पान किया करते थे , जब सोचता हु तो यही लगता है की लोगो की मानसिकता बदल गई है , काफी कुछ तो इस टीवी की भेट चढ़ गया है, पहले ये संस्कृति केवल फ्लैट की संस्कृति कहलाती थी लेकिन अब छोटी गली मोहल्ले भी अब इस संस्कृति के पूर्ण आगोश में है,